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Monday, October 08, 2018

Mahalaya Amavasya 2018 Date And Time: महालया कब क्यू मनाया जाता है जाने इसका महत्व


◆ नवरात्र आने वाली है और नवरात्र से ठीक पहले आने वाली अमावस्या को महालया अमावस्या कहा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इसी दिन से माँ दुर्गा को धरती पर बुलाया जाता हैं और साथ ही साथ दुर्गा पूजा की शुरुआत भी इसी दिन से होती है। तो आइये जानते है महालया अमावस्या के बारे 

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Published on: October 8, 2018


Mahalaya Amavasya 2018: महालया ये त्यौहार बंगालियों के प्रमुख त्योहारों में से एक है और महालया को ही दुर्गा पूजा की शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है।

नवरात्र से ठीक पहले आने वाली अमावस्या को महालया अमावस्या के नाम से जाना जाता है। यूं तो यह एक बंगाली त्योहार है लेकिन इस त्यौहार को पूरा देश बड़े ही उत्साह के साथ मनाता है। बंगाली लोगों में इस पर्व की तैयारी 1 महीने पहले से ही शुरू हो जाती है। इस साल महालया अमावस्या 8 अक्टूबर को मनाई जाएगी। महालया को देश के अधिकांश हिस्से में पितृपक्ष के आखिरी दिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पितरों का श्राद्ध कर उन्हें दोबारा विदाई दी जाती है। ऐसा माना जाता है कि अगर पितरों को ठीक से विदाई न दी गई तो वे नाराज हो जायेंगे और श्राप दे देंगे लेकिन, अगर पितर खुशी-खुशी विदा होते हैं तो वह अपने साथ परिवार की सारी परेशानियां लेकर चले जाते हैं।



★ महालया पर्व क्या है?

◆– महालया ये त्यौहार बंगालियों के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे दुर्गा पूजा की शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन शक्ति रूपी मां दुर्गा को धरती पर महिषासुर रूपी बुराइयों से आम जन की रक्षा करने के उद्देश्य से बुलाते हैं। ये त्यौहार आश्विन माह की अमावस्या को मनाया जाता है इस दिन श्रद्धालु मां दुर्गा की पूजा करके उनका आह्वान करते हैं और इस आह्वान के बाद माँ दुर्गा का आगमन हो जाता है। वैसे तो इस त्यौहार का हर दिन काफी महत्त्व रखता है पर षष्ठी से दशमी तक का दिन काफी महत्त्व रखने वाला दिन है, वैसे तो कई दिन पूर्व से पंडाल बनाए जाते हैं पर माँ दुर्गा की प्रतिमाएं षष्ठी को स्थापित की जाती हैं। महालया पितृपक्ष का आखिरी दिन भी होता है। इस दिन वे लोग अपने पितरों का श्राद्ध करते हैं जिन्हें अपने पूर्वज के देहावसान की तिथि मालूम नहीं होती है।



★ कैसे मनाया जाता है महालया?

◆– महालया के दिन मुख्यतः सभी लोग अपने पितरों को याद करते हैं। उन्हें भोजन अर्पित करते हैं और उनकी पुनः विदाई करते हैं। इस दिन लोग सुबह स्नान करके मां दुर्गा की प्रतिमा की पूजा करते हैं। खाना और कपड़े दान करते हैं। पितरों के लिए चांदी या तांबे के बर्तन में पकाए जाते हैं। इसके बाद केले के पत्तों और सूखी पत्तियों से बने कटोरे में यह भोजन खिलाया जाता है। इस भोजन में खीर, पूड़ी, चावल, दाल और सीताफल शामिल होता है। महालया के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा उन्हें श्रद्धास्वरूप दक्षिणा प्रदान किया जाता है। इसके बाद भोजन कर पितरों को विदाई दी जाती है।

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